भारत में आय और संपत्ति की असमानता को लेकर वर्ल्ड इनइक्वलिटि की रिपोर्ट में कहा गया है कि आजादी के बाद से 1980 के दशक की शुरूआत तक असमानता में कमी देखी गई। लेकिन फिर इसके बाद धीरे-धीरे असमानता बढ़ना शुरू हुई और 2000 के दशक में आसमान छूने लगी। इस रिपोर्ट में 1922 से लेकर 2023 तक के आंकड़ों को शामिल किया गया है। रिपोर्ट को अरबपति राज का उदय ( दि राइज ऑफ बिलिनॉयर राज) नाम दिया गया है। इसे 4 अर्थशास्त्रियों थॉमस पिकेटी, नितिन कुमार भारती, लुकास चांसेल और अनमोल सोमांची ने मिलकर तैयार किया है।
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अमीर-गरीब के बीच की खाई दिखाता चित्र। Photo Credit- MAGZTER |
अंग्रेजी शासन से भी अधिक हुई भारत में असमानता-
2022-23 में देश के सबसे अमीर 1 प्रतिशत लोगों के पास आय का 22.6% और संपत्ति का 40.1% हिस्सा है। यह भारत के इतिहास में सबसे अधिक है, जो कि अंतरयुद्ध औपनिवेशिक काल (अंग्रेजी शासन) से भी अधिक है। मतलब भारत में अंग्रेजी शासन के समय की असमानता, आधुनिक पूँजीपति वर्ग वाले अरबपति राज से पैदा हुई असमानता से भी अधिक हो गई है। 1% इन टॉप अमीरों की आय प्रतिशत दुनिया में सबसे अधिक है, अफ्रीका, ब्राजील और यूएस से भी अधिक।
भारत में बढ़ती अरबपतियों की संख्या-
फोर्व्स बिलिनियर रैंकिंग के अनुसार 1 अरब से अधिक की आय और संपत्ति रखने वाले भारतीयों की संख्या 1991 में 1 थी। जो 2011 में बढ़कर 52 और 2022 में 162 हो गई है। इस दौरान देश की शुद्ध राष्ट्रीय आय में से इन लोगों की कुल संपत्ति 1991 के 1 %से बढ़कर 2022 में 25% हो गई है। 1990 से लेकर 2022 के बीच भारत में अरबपतियों की संख्या में ये बढ़ोतरी देखने को मिली है। क्योंकि राष्ट्रीय आय में वृद्धि होने से प्रतिवर्ष आय में औसतन 3.6% की वृद्धि दर्ज की गई है।
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अंग्रेजों के शासन से भी अधिक हुई भारत में असमानता |
अर्थव्यवस्था की रेस में चीन और वियतनाम से पीछे हुआ भारत
1975 के आस-पास चीन, वियतनाम और भारत की औसत आय लगभग समान थी। तीनों देश क्षेत्रीय महंगाई और क्रय शक्ति की क्षमता से जूझते हुए उसे संतुलित करने का प्रयास कर रहे थे। लेकिन 2000 के दशक में चीन और वियतनाम की आय भारत से बढ़कर 35% से 50 % हो गई। वर्तमान में चीन की आय तेजी से बढ़कर भारतीय अर्थव्यवस्था की 2.5 गुनी से अधिक हो गई है। हालांकि वियतनाम की अर्थव्यवस्था 2005 में मंद हुई लेकिन 2022 में उसकी औसत आय भारतीयों से 33%ज्यादा हो गई है। चीन और वियतनाम जैसे दोनों देश भारत की तरह लोकतांत्रिक भी नही हैं, लेकिन फिर भी 1960 से लेकर 2022 तक इनकी विकास दर भारत की तुलना में काफी अधिक रही है।
टैक्सदाताओं की संख्या में हुई धीमी बढ़ोत्तरी
1990 के अंत तक भारत में टैक्स रिटर्न भरने वालों का औसत 1%से भी कम था। 1991 में हुए आर्थिक सुधारों के बावजूद अगले तीन दशकों में कोई महत्वपूर्ण बदलाव देखने को नहीं मिले। 2011 तक ऐसे लोगों का औसत देश की कुल जनसंख्या में 5% था जो कि धीमी वृद्धि के साथ 2017-20 में बढ़कर 9% ही हुआ है।
आखिर कैसे कम होगी असमानता–
इस तरह की असमानता कब तक बढ़ेगी और कब समाप्त होगी कहा नहीं जा सकता, क्योंकि बिना सामाजिक और राजनीतिक क्रान्ति के इसको कम नहीं किया जा सकता है। आय और संपत्ति की ये असमानता अपने आप कम होने के कोई आसार भी दिखाई नहीं पड़ते।
टैक्स ढाँचे में बदलाव करके प्रतिगामी कर व्यवस्था लागू करने की भी बात होती रहती है। इसलिए करोड़पतियों-अरबपतियों की इस बढ़ती आय और संपत्ति पर सुपर टैक्स लगाने की वकालत की जा रही है, ताकि इससे प्राप्त धन को असमानता की खाई में जीवन जीने को मजबूर लोगों के उत्थान के लिए हो सके।
रिपोर्ट के अनुसार अगर इन 167 लोगों पर 2 प्रतिशत की दर से भी सुपर टैक्स लगा दिया जाए तो राष्ट्रीय आय की 0.5 % आय प्राप्त की जा सकती है। और इस आय का उपयोग असमानता की खाई में समाहित लोगों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा, स्वास्थ्य सेवाएं और आधारभूत सेवाएं प्रदान करने में किया जा सकता है।
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