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दिल्ली की सांसे रोकते कचरों के ढ़ेर को कैसे खत्म करेगी सरकार

 18 मिलियन की आबादी वाला केंद्र शासित प्रदेश दिल्ली दुनिया के सबसे बड़े महानगरों में से एक है जो कि अभी गंभीर अपशिष्ट निपटान संकट का सामना कर रहा है. क्योंकि 2024 तक दैनिक कचरा उत्पादन मौजूदा 11332 टन से बढ़कर 19,100 टन तक हो सकता है. आंकड़ों की माने तो शहरी जनसंख्या प्रति वर्ष 3.5% की दर से बढ़ती है और शहर में उत्पन्न होने वाला प्रति व्यक्ति कचरा प्रति वर्ष 1.3% की दर से बढ़ता है. दिल्ली के वायु प्रदूषण पर आईआईटी-मद्रास के नेतृत्व में एक अंतरराष्ट्रीय अध्ययन में पाया गया कि इसकी बिगड़ती वायु गुणवत्ता का प्रमुख कारण क्लोराइड युक्त कणों की उपस्थिति है जो मुख्य रूप से डब्ल्यूटीई संयंत्रों में प्लास्टिक के जलने से उत्पन्न होते हैं।

 दिल्ली का कचरा पहाड़


हम भारतीय प्रतिवर्ष लगभग 62 मिलियन टन अपशिष्ट उत्पादन करते हैं। इनमें से लगभग 43 मिलियन टन (70%) ही एकत्र कर पाते हैं. इसका लगभग 12 मिलियन टन को उपचारित कर पाते बाकी बचा हुआ लगभग 31 मिलियन टन लैंडफिल साइट्स में दफन कर देते हैं। और इसी तरह का दफन किया हुआ कचरा आज पहाड़ बनकर दिल्ली को प्रदूषित कर रहा है. 

                                


दिल्ली में प्रतिदिन कचरा उत्पादन की बढ़ती मात्रा–

एमसीडी के आंकड़ों के अनुसार दिल्ली में प्रतिदिन कचरा का उत्पादन जहां 2021-22 में 11094 टन था वहीं 2022-23 में ये आकड़ा बढ़कर 11332 टन पहुंच गया है. दिल्ली में एमसीडी के अंतर्गत आने वाले क्षेत्र में सबसे अधिक कचरा निकलता है इसकी मात्रा लगभग 200 टन प्रतिदिन तक होती है जबकि एनडीएमसी के अंतर्गत आने वाला क्षेत्र सबसे कम कचरा उत्पन्न करता है. प्रतिदिन उत्पादित कचरे में से 61% कचरा ही प्रोसेस होता है. इस साल दिसंबर के अंत तक इसे 86% तक ले जाने का एमसीडी का प्लान है. 

    खराब ठोस अपशिष्ट प्रबंधन प्रथाएं महानगर के स्वास्थ्य और सौहार्द्र को कई तरह से प्रभावित करती हैं जैसे निवासियों के बीच ट्रांस मैटिंग रोग और पर्यावरणीय गिरावट, जिसमें भूमि भराव से ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन आदि शामिल है। शहर द्वारा उत्पन्न अपशिष्ट पर्यावरणीय समस्याओं और बेहतर शहरी प्रबंधन की चुनौतियों में बड़ा योगदान देता है. हिंदुस्तान टाइम्स के अनुसार एमसीडी की सबसे बड़ी योजना लैंडफिल साइट पर कचरा दफनाने के बजाय उसका 100% निस्तारण करना है. पर्यावरणीय उपायों के द्वारा ही इस समस्या से निपटा जा सकता है. 



दिल्ली के कचरा प्रबंधन के लिए कौन जिम्मेदार है- 

     नगरपालिका ठोस अपशिष्ट (प्रबंधन और प्रहस्तन) नियम, 2000 के अनुसार भारत में ठोस अपशिष्ट के संग्रहण, परिवहन, निपटान और पृथक्करण का उत्तरदायित्व शहरी स्थानीय निकायों (Urban Local Bodies- ULBs) पर है। दिल्ली के सन्दर्भ में नगरपालिका ठोस अपशिष्ट प्रबंधन की यह जिम्मेदारी तीन एजेंसियों की है. इनमे सबसे अधिक भार दिल्ली नगर निगम (एमसीडी) के ऊपर फिर नई दिल्ली नगर पालिका परिषद (एनडीएमसी) और दिल्ली छावनी बोर्ड (डीसीबी) के ऊपर होता है. 

     कचरा को उचित ढ़ंग से निपटाने के लिए पात्र, डिपो और स्थान की जरुरत होती है, इसको उपलब्ध कराने का काम भी एमसीडी का अनिवार्य कार्य है। एमसीडी को सरकारी कर्मचारी के अलावा निजी क्षेत्र के विभिन्न एजेंटों द्वारा भी मदद प्रदान की जाती है। इन निजी एजेंटों में साफ-साफाई के लिए सफाई कर्मचारी, कचरा बीनने के लिए कचरा संग्रहकर्ता; कूड़ा बीनने वाले; और इस कबाडे़ को एकत्र करके बेचने के लिए कबाड़ विक्रेता भी शामिल होते हैं।


दिल्ली में किन जगहों पर कूड़ा दफनाया जाता है

    1975 से लेकर अब तक दिल्ली में 20 लैंडफिल साइटें बन चुकीं हैं. इनमे से वर्तमान में केवल 3 लैंडफिल साइटें काम कर रहीं हैं. बाकी की 15 को पहले ही बंद कर दिया गया और 2 जगहों को निलंबित कर दिया गया था. 1984 से काम कर रहा पूर्वी दिल्ली का गाज़ीपुर लैंडफिल साइट वर्तमान में 29.6 हेक्टेयर इलाका घेर चुका है. यह दिल्ली का सबसे बड़ा और सबसे पुराना लैंडफिल साइट है. 1993 से उत्तरी दिल्ली का भलस्वा लैंडफिल साइट  21.006 हेक्टेयर तक विस्तारित हो चुका है. 1994 से दक्षिणी दिल्ली का ओखला लैंडफिल साइट 16.20 हेक्टेयर तक विस्तारित हो चुका है.

      दिल्ली की कुल आबादी का लगभग 49% हिस्सा झुग्गी-झोपड़ियों, अनधिकृत कॉलोनियों में रहता है। इस हिस्से को अनियोजित क्षेत्र कहते हैं. यहाँ ठोस कचरे के संग्रह, परिवहन और निपटान की कोई उचित व्यवस्था नहीं होती है। कचरा निपटान में यह एक गंभीर समस्या बनी हुई है। एक मोटे अनुमान के अनुसार लगभग 25% आबादी ही नियोजित विकास क्षेत्रों में रहती है। जहां का कचरा तय मानकों के अनुरूप निपटाया जाता है. हालांकि आलोचकों का कहना है कि इन जगहों पर भी शत-प्रतिशत ढ़ंग से कचरे का निपटान नहीं होता है।

     विशेषज्ञों के अनुसार तीनों सैनिटरी लैंडफिल साइटें पहले ही संतृप्त हो चुकी हैं। हालाँकि, उनका उपयोग जीवन और संपत्ति दोनों के लिए बड़े जोखिम में भी किया जा रहा है। सरकार लैंडफिल के लिए नई साइटों को खोज रही है। साथ ही साथ लैंडफिल को पुनः प्राप्त करने का प्रस्ताव भी चल रहा है, क्योंकि नागरिकों के कड़े प्रतिरोध के कारण कोई नई साइट उपलब्ध नहीं हो रही है। इसलिए जहां ये काम चल रहा है, वो लोग चाहते हैं कि कचरा दफनाने की इन जगहों को कहीं और शिफ्त किया जाए। हालांकि विशेषज्ञों का कहना है कि लैंडफिल बंद करना कोई व्यवहार्य विकल्प नहीं है।


ठोस अपशिष्ट में शामिल पदार्थ और उसके प्रकार 

    मोटे तौर पर कचरे को दो भागों में विभाजित किया जा सकता है, गीला कचरा एवं सूखा कचरा. गीले कचरे को जैव-निम्नीकरणीय कचरा भी कहते हैं. यह अक्सर घरों की किचन से संबंधित होता है. इनमें अधिकांशतः बचे हुए खाद्य पदार्थ होते हैं. ये एक निश्चित समय में आसानी से अपघटित हो जाते हैं.

    सूखे कचरे को गैर- जैव-निम्नीकरणीय कचरा भी कहते हैं. इसमे अनेक तरह का कचरा शामिल होता है जैसे कांच,  प्लास्टिक,  कैमिकल,  धातु इत्यादि.  ये सभी पदार्थ आसानी से अपघटित नहीं होते हैं. अगर होते भी हैं तो बहुत लंबा समय लगता है। इस अपशिष्ट की एक विशेषता है कि इसे रीसाइकल और रीयूज किया जा सकता है.  मगर अनियमित अपशिष्ट निपटान प्रणाली के कारण यह अपशिष्ट वातावरण को लगातार हानि पहुंचाता रहता है. इसलिए गैर- जैव-निम्नीकरणीय कचरे के निपटान के उचित इंतजाम किए जाने चाहिए। 

           कचरे को बीनते लोग


दिल्ली में अपशिष्ट प्रबंधन में क्या दिक्कतें आ रहीं हैं?

अपशिष्ट पृथक्करण की पर्याप्त एवं उचित व्यवस्था का अभाव है. इसमें सबसे बड़ी भूमिका जागरुकता का न होना है। क्योंकि जागरुकता की कमी के कारण बिना पृथक किया हुआ कचरा (कचरे को अलग-अलग किए बिना) लैंडफिल साइट पर पहुंचा दिया जाता है। मिक्स कचरा पहुंचता है तो रीसाइक्लिंग और कंपोस्टिंग क्षमता का प्रयोग भरपूर मात्रा में नहीं हो पाता है। चूंकि हमारे पास एडवांस्ड टेक्नोलॉजी का अभाव जिस कारम यह समस्या और भी विकराल रुप ले लेती है।

     देश के अदिकांश हिस्सों की तरह दिल्ली में भी कचरे की छटाई- बिनाई का काम हांथों से ही हो रहा है। यह काफी पारिश्रमिक वाला काम है, इससे कचरा बीनने वालों के स्वास्थय की समस्याएं भी सामने आती हैं। वहीं उपभोक्ताओं की पसंद लगातार बदल रही हैं। ई कॉमर्स और ऑनलाइन शॉपिंग के आने के बाद से कचरा के बढ़ने की मात्रा भी बढ़ रही है। हर एक अव्यवस्था के पीछे नियम-कानून का हवाला दिया जाता है, इस लिहाज से देखा जाए तो कचरा निपटान से जुड़े नियम अभी पूरी तरह से स्पष्ट नहीं हैं. कुछ मामलों में स्पष्टता है भी तो कड़ाई से उनका पालन नहीं हो रहा है। 



दिल्ली में कचरा प्रबंधन से जुड़ी तकनीकें


ठोस अपशिष्ट के प्रबंधन से जुड़ी कोई तकनीक अभी तक प्रमुख रूप से नहीं अपनाई गई है. इकट्ठे किए गए कचरे को अलग-अलग तरीकों से छांटा-बीना जाता है. जमीन के नीचे कचरा दफनाने की सदियों पुरानी तकनीक आज भी दिल्ली में प्रमुखता से प्रयोग में लाई जा रही है. हालांकि अन्य विकल्पों का भी प्रयोग हो रहा है, लेकिन इसकी प्रतिशतता काफी कम है। 

   ठोस कचरा निपटान की और भी तरीकों पर रिसर्च चल रही है।  शहर में किसी भी प्रौद्योगिकी के उपयोग को और बड़े स्तर पर अपनाने से पहले निम्नलिखित पैमानों पर उसका मूल्यांकन किया जाना चाहिए ताकि राजधानी दिल्ली का समावेशी विकास सुनिश्चित हो सके. हमें ऐसी विधी को विकसित करना चाहिए जो पर्यावरण की दीर्घकालिक आवश्यकताएं पूरी करती हो। तकनीक सस्ती और टिकाऊ हो, क्योंकि अगर अधिक खर्च के बाद कम लाभ होगा तो तकनीक अपना प्रभाव नहीं बना पाएगी. खरीदने के बाद उसके रखरखाव में भी कम खर्च होना चाहिए, क्योंकि सरकारी मशीनरी में बार-बार बजट पास कराना काफी चुनोतीपूर्ण होता है। सेंट्रल पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड द्वारा मंजूरी मिलना जरुरी है। इसके बाद म्युनिसिपल सॉलि़ड वेस्ट नियमों में बताये गये निर्देशों और मानकों के अनुरूप भी होनी चाहिए। 




सरकार ठोस अपशिष्ट को कैसे खत्म कर सकती है–


पुनर्चक्रण प्रणाली का उचित ढ़ंग से लागू करना। क्योंकि पुनर्चक्रण के अभाव में कचरे का उचित निपटान नहीं हो पाता है। हमें अपशिष्ट से अलग-अलग तरह के पदार्थ बनाने चाहिए ताकि मूल पदार्थ को अधिक से अधिक समय तक प्रयोग में लाया जा सके और प्राकृतिक संसाधनों का दोहन कम से कम हो सके। चूंकि बार-बार नए संसाधनों का दोहन नहीं करना होगा तो इससे ग्रीन हाउस गैसों का उत्पादन कम होगा साथ ही साथ अपशिष्ट निपटान के लिए नई भूमि भी बर्बाद नहीं करनी पडेगी। 

     अपशिष्ट को कम करने पर जोर देना चाहिए। इसके लिए हम दे तरह से प्रयास कर सकते हैं। पहले स्तर पर हम लोगों को शिक्षित कर सकते हैं ताकि अधिक दोहन करने वाले लोगों को ऐसा करने से रोक सकें। दूसरे स्तर पर हम योजनाओं, नियमें-कानूनों की भी मदद ले सकते हैं। उपभोग करने वाले लोगों को जब उनके द्वारा प्रयोग किए जा रहे उत्पादों के निपटान के दौरान आने वाली समस्याओं को बताया-दिखाया जाएगा तो लोग इसके प्रति जागरुक होगें। जो लोग इसके बावजूद इसमें सुधार के प्रयास नहीं करेंगे उनके लिए सरकार दण्डनीय कानून बनाएगी जिसको सख्ती से लागू करके ऐसा करने से रोका जा सकता है।

     उन्नत तकनीक की मदद से कचरा निपटान को और सरल बनाया जा सकता है। एडवांस्ड सॉफ्टवेयर के जरिए कचरा एकट्ठा और निपटान को सरल बनाया जा सकता है। इसमें डाटा कलेक्शन के जरिए जरुरी और गैर जरुरी पदार्थों को आसानी से अलग-अलग किया जा सकता है। सॉफ्टवेयर के अलावा उचित ढ़ंग से मैनेजमेंट करने से भी आधे से अधिक समस्या का हल निकाला जा सकता है। इससे पुनर्चक्रण में काफी मदद मिलती है। 

     स्वंय सहायता समूहों के प्रयासों से इस तरह के काम और तेजी से किए जा सकते हैं। कचरे को प्राकृतिक तरीकों से  नष्ट करने पर ध्यान देना चाहिए। हमें रसायनों के उपयोग से बचना चाहिए ताकि मिट्टी और पानी की गुणवत्ता को लंबे समय तक बरकरार रखा जा सके।


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