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सेंसिबल ड्रामा से बुनी फिल्म झीनी बीनी चदरिया

 झीनी बीनी चदरिया फिल्म में बनारस की गलियों में साड़ी बुनता बुनकर और किसी गली-मोहल्ले में डांस करती डांसर की जिंदगी की दास्तानें सुनाई गई हैं। शुरु में कहानी विदेशी टूरिस्ट अदाह की नजरों से बढ़ती है, लेकिन जब अदाह शहदाब(मुस्लिम बुनकर) को प्रताड़ित करने की समस्या को पूरी दुनिया से जोड़ती है तो इसे बड़ा पटल मिल जाता है। इसी तरह रानी (डांसर) की कहानी बताती है कि भारत में केवल मुस्लमान ही पीडित नही है बल्कि हर वो शख्स पीडित है जो कमजोर है। 

झीनी बीनी चदरिया फिल्म का दृश्य


फिल्म की कहानी क्या है-

     फिल्म में सांप्रदायिकता, रीति-रिवाजों पर प्रतीकों में बातचीत, बलात्कार, हिंसा, समकालीन राजनीति और इतिहास की गोद में पलते दुख को बेहद सरल अंदाज में स्क्रीन पर पेश किया है। मुस्लिम परिवार के अलावा एक डांसर के जीवन को भी करीब से दिखाया है। कैसे एक डांसर अपनी बच्ची को इस पेशे से दूर करने की कोशिशे करती है, उसे पढ़ाना-लिखाना चाहती है, लेकिन अंत में कुछ और ही दिखाई पड़ता है। 

   इन मुद्दों को उठाते हुए फिल्म बेहद धीमी गति से आगे बढ़ती है कि एकाएक कहानी में तेजी आती है और देखते ही देखते सब बिखरता हुआ दिखने लगता है। फिर अंत होते होते रानी और शहदाब जैसे किरदार फिर से टूटकर बिखर जाते हैं। इसी बिखराव के साथ फिल्म खत्म होकर किरदारों को ऑडियंस के हवाले छोड़कर चली जाती है। 



किरदारों की असल पहचान-

फिल्म में किरदारों की भीड़ नहीं है, कुछ गिने-चुने कलाकार ही हैं जो कहानी को अंत तक लेकर जाते हैं और ऑडियंस पर जोरदार असर डालते हैं। इनमें रानी (डांसर) के किरदार में Megha Mathur, शहदाब के किरदार(मुस्लिम बुनकर) में Muzaffar Khan हैं। भारत घूमने आई विदेशी टूरिस्ट अदाह के किरदार को Syed Iqbal ने निभाया है। वहीं पिंकी (रानी की बेटी) के किरदार को Roopa Chaurasiya ने निभाया है।



किन पैमानों पर खरी उतरी फिल्म-

लेखक और निर्देशक Ritesh Sharma ने अपने काम के जरिए शाहदाब और अदाह की मजबूत कैमिस्ट्री (टूटी-फूटी हिंदी और अंग्रेजी बोलना) को फिल्म में दिखाया है। भारत में मुस्लिमों के साथ होने वाली ज्यादतियों को अदाह के जरिए ही खुलते दिखाया है। बनारस की असल गली-मोहल्लों को दिखाने से इंगेजमेंट अच्छा रहा है। बीच-बीच में चुनावी रैलिओं और भाषणों ने फिल्म में घट रही घटनाओं की गंभीरता और उससे उपजे डर को किरदारों के बिना बोले ही कहलवा दिया है। 

    मेकर्स द्वारा अंत में सब कुछ ठीक करने की नाकाम कोशिशे नहीं हुई हैं, बल्कि अंत को जैसा का तैसा ही दिखाया है। फिल्म में सेक्स और हिंसा के विजुअल्स सीधे तौर पर न होने के बावजूद उनका इंपैक्ट पूरी तरह से दिखाई पड़ता है। रानी के किरदार ने एक अकेली डांसर(सिंगल पेरेंट) के जीवन की तकलीफों को भी उभार दिया है। किस तरह नई पीढ़ी इस पेशे से जुड़ती है ये भी दिखाया गया हैै। 

झीनी बीनी चदरिया फिल्म का अंग्रेजी पोस्टर



कहाँ कमी रह गई–  

खुले विचारों वाली अदाह का उस रात के बाद स्क्रीन से गायब हो जाना, बुनकरों और डांसरों की चुनौतियों को थोडा और दिखा सकते थे, हिंदू-मुस्लिम के बीच की खाई को बेहतर ढ़ंग से दिखा सकते थे, गानों का प्रयोग और बेहतर हो सकता था। 



फिल्म देखने लायक है या नहीं–

सैसिबल टॉपिक पर बनी ड्रामा देखना हो तो जरुर देखिए। अतीत और वर्तमान में मुस्लिमों और कमजोर महिलाओं (खासकर डांसर) के साथ हुई ज्यादतियों को सरल तरीके से समझने में ये फिल्म काफी मददगार साबित होती है। बाकी इतिहास और राजनीति से भरे लंबे-चौड़े डायलोग और डिबेट की उम्मीद करके देखोगे तो निराशा ही होगी। ओवरऑल सोसाइटी से जुड़े गंभीर मसलों पर बनी फिल्म है, समय निकालकर देखना चाहिए।  


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