Ticker

6/recent/ticker-posts

हाईकोर्ट ने मदरसा कानून को धर्मनिरपेक्षता और मूल अधिकारों का उलंघन कह किया रद्द

 इलाहाबाद हाईकोर्ट ने उत्तर प्रदेश मदरसा शिक्षण कानून 2004 को धर्मनिरपेक्षता और मूल अधिकारों का उलंघन मानते हुए असंवैधानिक करार दिया है। बेंच ने कहा कि राज्य के पास यह अधिकार नहीं है कि वह धार्मिक शिक्षा देने के लिए अलग बोर्ड का गठन करे, जहां केवल एक धर्म से जुडी शिक्षा और दर्शन दिए जाते हों।  

मदरसा में पढ़ाई करते मुस्लिम छात्र

    अंशुमन सिंह राठोर द्वारा दायर याचिका की सुनवाई  न्यायधीश विवेक चौधरी और सुभाष विद्यार्थी कर रहे थे। यह याचिका उत्तर प्रदेश मदरसा बोर्ड के खिलाफ दायर की गई है, जो कि धर्मनिरपेक्षता, अनुच्छेद 14, 15 और 21-A में दिए मूल अधिकारों के उलंघन के तहत दायर की गई थी। इसमें कहा गया है कि राज्य का यह कर्तव्य है कि 18 साल से कम उम्र के बच्चों को धर्मनिरपेक्ष शिक्षा प्रदान करानी चाहिए। अलग-अलग धर्मों से जुड़े बच्चों को असमान और अलग शिक्षा नहीं मिलनी चाहिए। याचिकाकर्ता ने राइट टू एजूकेशन की धारा 1(5) को भी चुनौती दी, जिसमें मदरसों, वैदिक स्कूलों और ऐसे ही धार्मिक शिक्षा प्रदान करने वाले संस्थानों को छूट दी गई थी। 

इलाहाबाद उच्च न्यायालय


     मदरसा में जो शिक्षा मिलती है वह सामान्य संस्थान के बच्चों से भिन्न होती है; जैसे कि राज्य के प्राइमरी स्कूल, हाई स्कूल और इंटरमीडियट बोर्ड में होता है।  कोर्ट ने यह भी पाया कि अन्य धर्मों के सामान्य स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चे आधुनिक विषयों को पढ़ रहे हैं जबकि मदरसों के बच्चे इससे वंचित रह जाते हैं, यह अनुच्छेद 21-A और 21 का उलंघन है। इसी के साथ राज्य को मदरसों में पढ़ने वाले बच्चों को सामान्य स्कूलों में पढ़ने भेजने के निर्देश भी दिए। 


Post a Comment

0 Comments