बीते 23 नवंबर को पाकिस्तान के आर्मी चीफ कमर जावेद बाजवा ने एक सम्मलेन में भाग लिया. ये सम्मेलन आज कल खूब चर्चा का विषय बना हुआ है. आखिर क्या है ऐसा इस सम्मेलन में की ना केवल पाकिस्तान में इसको लेकर गरमा गर्मी है बल्कि इसकी गर्माहट भारत तक महसूस की जा रही है
असल में आने बाली 29 नवंबर को पाकिस्तान के मौजूदा आर्मी चीफ अपने पद से रिटायर होने वाले हैं. मतलब अब उनकी जगह नया आर्मी चीफ नियुक्त होगा. और देश दुनिया में ये बात कोई दबी छिपी नहीं है की पाकिस्तान की आर्मी, पाकिस्तान की राजनीति को आड़े टेडे जैसे चाहती है जब तब नियंत्रित करती रहती है. तो इस लिहाज से तो ये खबर चर्चा का विषय बनने ही बाली थी. फिर ऊपर से आर्मी चीफ ने कई ऐसे बयान भी दिए की ये बात और भी लोगों के नजर में आ गई .
अपने समापन भाषण में आर्मी चीफ अपने देश की आर्मी के गुणगान कर रहे थे. जिसकी तुलना वे भारत की आर्मी से भी जब तब करते जा रहे थे. इसी दौरान उन्होंने 1971 के युद्ध की भी चर्चा करी. इसमें उन्होंने बताया की ये युद्ध कोई फौज की नाकामी नहीं बल्कि पाकिस्तानी शासन की नाकामी था. साथ ही अपनी फौज के बारे में एक और बड़ा खुलासा किया की उस वक्त पाकिस्तान की तरफ़ से महज 34 हजार सैनिक लड़ रहे थे. 92 हज़ार सैनिकों के होने की बात को नकार दिया और कहा की इतनी ज्यादा संख्या नहीं थी.
फिर बताया की पाकिस्तानी फौज दुनिया की ऐसी फौज है जिसको अपनी जनता और देश की पार्टियों से आलोचना झेलनी पड़ती है. और तो और ये आलोचना बेहद अभद्र और अनुचित भाषा में होती है. उन्होंने इसके पीछे के कारणों का जिक्र भी किया. उनके अनुसार देश की फौज राजनीतिक गतिविधियों में जब तब दखल करती रहती है, जिस कारण ऐसा होता है.
कुल मिलाकर जो इल्जाम पहले पाकिस्तान पर लगाए जाते थे की उनके देश की कमान राजनेता नहीं देश की फौज संभालती है. ये खुद पाकिस्तान के आर्मी चीफ ने कुबूल किया है. हालांकि उन्होंने जाते जाते सफाई भी दी की आगे से आर्मी पाकिस्तान के राजनीतिक मामलों में दखल नहीं देगी. लेकिन इसकी संभावनाएं कितनी भविष्य में सही साबित होंगी ये तो वक्त ही बताएगा.
खैर अगर स्पीच का शुरुआती हिस्सा ध्यान में रखा जाए तो इसकी संभावनाएं कम ही नजर आतीं हैं. क्योंकि आर्मी चीफ ने बहुत जोर देते हुए कहा था की पाकिस्तान की आर्मी अपने कामों से भड़कर अर्थात अपनी सीमाओं से कहीं आगे भड़कर काम करती है. उन कामों में उन्होंने ये भी गिनाया दोस्त देशों से कर्ज में राहत और कतर जैसे देशों से सस्ती गैस की खरीद. इस सब से साफ है कि जो काम देश की ब्यूरोक्रेसी और कार्यपालिकाएं करती हैं वो काम भी आर्मी कर रही है. तो इससे पाकिस्तान की आर्मी के पाकिस्तान पर नियंत्रण को समझा जा सकता है.
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