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पर्यावरण और विकास में बढ़ती तकरार का समाधान सतत विकास

 जीवों के चारो तरफ का वातावरण जहाँ वे रहते हैं, पर्यावरण कहलाता है।  इसमें सजीव (जीवित) और निर्जीव (बेजान) दोनों शामिल होते हैं। चूंकि हम लोग (मनुष्य) सभी जीवों में सबसे ज्यादा विकसित और क्रियाशील हैं। इसलिए विकास की प्रकिया में हम लोग जाने-अनजाने पर्यावरण को सकारात्मक और नकारात्मक दोनों तरीके से सबसे ज्यादा प्रभावित करते हैं।     

      बढ़ती जनसंख्या की जरुरतों और लालसाओं को पूरा करने के लिए हमने विकास के क्रम में पर्यावरण से जुडी अनेक समस्याएं भी पैदा कर दी हैं। इन समस्याओं को वैज्ञानिकों ने पर्यावरण प्रदूषण नाम दिया है। इन समस्याओं में  वायु प्रदूषण और जल प्रदूषण की चर्चा-परिचर्चा अक्सर होती रहती है। लेकिन इसके अलावा ध्वनि प्रदूषण, मृदा प्रदूषण, रेडियोधर्मी प्रदूषण और प्रकाश प्रदूषण जैसी समस्याएं भी शामिल हैं। 

    विकास पत्रकारिता की इस रिपोर्ट में हमने पर्यावरण और विकास के अंतर्गत विकास के दौर में पर्यावरण के मुद्दों को चुना है। तमाम मुद्दों में वायू प्रदूषण को चुनने का सबसे बड़ा कारण भारत की राजधानी दिल्ली का दुनिया की सबसे प्रदूषित राजधानी में शामिल होना है। 


                      प्रतीकात्मक चित्र- वायू प्रदूषण

     

वायु प्रदूषण की भारत में स्थिति- 


स्विस ऑर्गनाइजेशन आईक्यू-एयर द्वारा जारी वर्ल्ड एयर क्वालिटि रिपोर्ट-2023 के अनुसार भारत दुनिया का तीसरा सबसे प्रदूषित देश है। इस मामले में भारत की स्थिति केवल बांगलादेश और पाकिस्तान से ही अच्छी है। वहीं भारत की राजधानी दिल्ली दुनिया की सबसे प्रदूषित राजधानी बनकर उभरी है अर्थात यहां की वायु गुणवत्ता सबसे खराब है।  बर्ष 2023 की रिपोर्ट के अनुसार दिल्ली में पीएम 2.5 लेवल की मात्रा 92.7 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर है। ऐसा लगातार चौथी बार हुआ है कि दिल्ली दुनिया की सबसे प्रदूषित राजधानी रही है। रिपोर्ट में ऊपर के 11 सबसे प्रदूषित शहरों की सूची में भारत के 10 शहरों का होना हैरान करने वाला है, क्योंकि सरकार लाखों-करोडों की योजनाएं प्रदूषण से निजात दिलाने के नाम पर बनाती है। तमाम खर्चों के बावजूद प्रदूषण के स्तर में सुधार न होना सरकार की ईमानदारी और उसकी कार्यशैली पर प्रश्नचिन्ह लगाता है।  

राजधानी दिल्ली में वायू प्रदूषण



वायु प्रदूषण के कारण–

वायु प्रदूषण के लिए इंसान और कुदरत दोनो ही जिम्मेदार होते हैं। इंसानी गतिविधियों में गाडियों और फैक्ट्रियों से निकलने वाला जहरीला धुंआ, अपशिष्ट दोहन से निकली विनाशकारी गैसें, निर्माण और विध्वंश से भी हवा में अनेक तरह की विषैली गैंसे मिल जाती हैं। ये गैसे ही वायु प्रदूषण के लिए जिम्मेदार होती हैं। इनमें कार्बन मोनोऑक्साइड, कार्बनडाइऑक्साइड, नाइट्रोजन ऑक्साइड, सल्फर डाइऑक्साइड और ओजोन जैसी गैसें शामिल होती हैं।

   प्राकृतिक घटनाओं में ज्वालामुखी विस्फोट, वनों की आग, धूल भरे तूफान और मरुस्थलीकरण (रेगिस्तान की धूल भरी आंधियां) शामिल होते हैं। इन गतिविधियों से भी उसी तरह की हानीकारक गैसें निकलती हैं लेकिन मानवीय कारकों की तुलना में इनकी प्रतिशतता और नकारात्मक प्रभाव डालने की क्षमता कम ही होती है।  

   हालांकि कुदरत का अपना क्षतिपूर्ति तंत्र भी है जिसके जरिए यह अपने आपको पहले की तरह साफ-सुथरा कर लेती है। लेकिन मानवों के संदर्भ में ऐसा नहीं होता है, क्योंकि मानव जिन स्रोतों से और जिस तरह के पदार्थों को पर्यावरण में छोड़ता है; कुदरत उनकी साफ-सफाई या तो करने में असमर्थ है या फिर उसे ऐसा करने में सैकड़ों-हजारों बर्ष लग जाते हैं। 

    

वायु प्रदूषण के प्रभाव–

विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार वायु प्रदूषण की अधिकता वाले स्थानों पर रहने से मानवों में अनेक तरह की स्वास्थ्य से जुड़ी समस्याएं पैदा हो जाती हैं, जैसे सांस लेने वाली नली में संक्रमण, दिल से जुड़ी जानलेवा बीमारियां और फेफड़ों का कैंसर भी हो सकता है। बच्चों, बुजुर्गों, गरीबों और पहले से बीमार लोगों को वायु प्रदूषण के अधिक घातक परिणाम भुगतने पड़ते हैं।

वायु प्रदूषण से प्रभावित होते लोग- प्रतीकात्मक चित्र



वायु प्रदूषण से निपटने के लिए सरकार की पहले–

1- ग्रेडेड रिस्पांस एक्शन प्लान-

सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर 2017 में लागू हुआ। वायू प्रदूषण की स्थिति गंभीर होने पर केवल आपातकालीन उपाय के रुप में इसे लागू किया जाता है। इसमें आपातकाल, गंभीर, बहुत खराब, औसत से खराब जैसे मानक तय किए गए हैं जो कि वायु में पीएम की मात्रा के आधार पर तय किए गए हैं। 

योजना कितनी सफल-कितनी असफल

    दी इकोनॉमिक टाइम्स के लेख के अनुसार ग्रैप योजना दिल्ली में वायू प्रदूषण को रोकने में पूरी तरह से कारगर नहीं है। यह स्थिति लगातार कारर्वाई और उन्हें लागू न करने के कारण उत्पन्न होती है।  विशेषज्ञ मानते हैं कि वाहनों के प्रदूषण, औद्दोगिक उत्सर्जन, अपशिष्ट दहन और निर्माण से निकलने वाले प्रदूषण को रोकने के लिए वास्तविक प्रयासों की जरुरत है। न की ऐसे प्रयासों के पीछे भागने की जो कम मात्रा में और एक समय विशेष पर ही प्रदूषण उत्पन्न करते हैं, जैसे कि पराली दहन।   


2 हरित कर–

प्रदूषण को कम करने के लिए सरकार पुराने वाहनों को चलन से बाहर करने के लिए हरित कर का सहारा ले रही है। यह केंद्र सरकार की योजना है जिसमें सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय आठ साल पुराने वाहनों के फिटनेस प्रमाणपत्र के नवीनीकरण के समय ग्रीन टैक्स लगाएगी। यह रोड़ टैक्स की 10-25 %तक होगा।  हालांकि हाइब्रिड और इलेक्ट्रिक वाहनों, दूसरे वैकल्पिक ईधनों से चलने वाले वाहनों और खेती से जुडें वाहनों पर ये टैक्स नहीं लगेगा। 

योजना कितनी सफल-कितनी असफल

     हालांकि ये प्रयास काफी हद तक प्रभावकारी रहा है।लेकिन आलोचकों का मानना है कि ये टैक्स भेदभाव करता है। सार्वजनिक परिवहन वाहनों पर कम हरित टैक्स लगेगा। अधिक प्रदूषण वाले शहरों में अधिक टैक्स लगेगा, रोड टैक्स का 50% तक है।  इस टैक्स से परिवहन लागत बढ़ जाएगी। 

              ग्रीन टैक्स को दिखाता प्रताकात्मक चित्र


3- स्मॉग टॉवर


सुप्रीम कोर्ट ने सेंट्रल पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड और दिल्ली सरकार को वायु प्रदूषण से निपटने के लिए दिल्ली में स्मॉग टॉवर लगाने के निर्देश दिए थे। इसके बाद दो टॉवर स्थापित किए गए हैं। यह एयर प्यूरीफायर की तरह होते हैं, जो कि प्रदूषित हवा को साफ करते हैं। चीन में दुनिया का सबसे बड़ा स्मॉग टॉवर मौजूद है। 

योजना कितनी सफल-कितनी असफल-

    इंडिया टुडे के लेख के अनुसार दिल्ली में लगाए गए ये टॉवर प्रभावकारी नहीं हैं। पूरी दिल्ली में इसके सकारात्मक प्रभाव पाने के लिए तकरीबन 40 हजार टॉवरों की जरुरत होगी। दिल्ली पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड के अनुसार ये दो टॉवर प्रयोग के उद्देश्य से लगाए गए थे। इनको चलाने में जितना खर्च हुआ है उस हिसाब से देखा जाए तो इनके परिणाम उतने संतोषजनक नहीं रहे हैं। 

                       स्मॉग टॉवर



4- वायु प्रदूषण को रोकने के लिए 300 करोड़ की लागत से 5 बर्षीय राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम चलाया गया । 2017 को आधार बर्ष मानते हुए वायु में PM 2.5 औरPM 10 पार्टिकल्स को 20 से 30 फीसद तक कम करने का अनुमानित राष्ट्रीय लक्ष्य रखा गया था। अगले 5 सालों में 102 प्रदूषित शहरों की हवा को स्वच्छ करने का लक्ष्य था। 

योजना कितनी सफल-कितनी असफल-      

स्विस आईक्यूएयर की पिपोर्ट के अनुसार 2023 में दिल्ली में PM 2.5 का स्तर 92.7 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर है जो कि 2022 में 89 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर थी। गुवाहटी और पटना जैसे बड़े शहरों के अलावा छोटे शहरों जैसे हरियाणा के मेरठ, उत्तर प्रदेश के मेरठ और बिहार के बेगुसराय में भी प्रदूषण का स्तर दिन-प्रतिदिन बढ़ता जा रहा है। इन रिपोर्टो से योजना के अप्रभावी होने का अंदाजा लगाया जा सकता है कि इतने खर्च के बावजूद सकारात्मक परिणाम देखने को नहीं मिले हैं। 


     वायू प्रदूषण के मामले में भारत की राजधानी दिल्ली और चीन की राजधानी बीजिंग में काफी समानता हुआ करती थी। एक समय दोनों ही प्रदूषण के लिए जानी जाती थी, लेकिन आज की स्थिति काफी भिन्न है। बीजिंग ने अपने शहर में प्रदूषण पर लगाम लगाई है जबकि भारत ऐसा करने में असफल रहा है। सबसे पहले जानते हैं कि चीन ने कैसे लगाई वायू प्रदूषण पर लगाम। उसके किन उपायों से सीख लेकर हम भी वायू प्रदूषण में अपनी स्थिति सुधार सकते हैं। 


चीन ने वायू प्रदूषण पर कैसे लगाम लगाई-

वायु प्रदूषण की बात करें तो, 2013 में चीन की स्थिति भी दयनीय थी। खराब हो चुकी स्थिति पर लगाम लगाने के लिए सरकार ने पूरे देश में वायु की गुणवत्ता में सुधार करने के लिए, नेशनल एयर क्वालिटी एक्शन प्लान लागू किया । इसके तहत सरकार ने सख्त से सख्त कार्रवाइयों को अंजाम दिया। हालांकि इन प्रयासों से नागरिकों को काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ा लेकिन ये मुश्किलें उन लाखों मौतों से बेहतर थीं, जो गिरते वायु प्रदूषण के स्तर के कारण राजधानी बीजिंग में दिन-प्रतिदिन हो रही थीं।

     सरकार ने शहर की प्रदूषणकारी फैक्ट्रियों को बंद कर दिया बाकी अधिकांश को शहर से दूर स्थानांतरित कर दिया, सड़क से पुराने वाहनों को हटवा दिया, कोयले की जगह प्राकृतिक गैस को बढ़ावा दिया, बड़ी संख्या में वृक्षारोपण किया गया।

चीन ने वायू प्रदूषण पर लगाया नियंत्रण


भारत वायू प्रदूषण पर लगाम क्यों नहीं लगा पा रहा

विशेषज्ञों का कहना है कि भारत में प्रदूषण के न घटने की दो वजहें हैं, पहला राजनीतिक संकल्प का अभाव, दूसरा आम जनता द्वारा सरकार पर दवाब न बनाना या किए जा रहे प्रयासों में सहायक न होना। भारत में वोट बैंक की राजनीति है। यहां गरीबी अधिक है, चुनाव के समय पर्यावरण मुद्दा बन ही नहीं पाता है। साथ ही साथ चीन की तरह एक पार्टी सिस्टम नहीं है। भारत में केंद्र सरकार कोई योजना लाती है तो राज्य सरकार के साथ गतिरोध के  कारण उसको धरातल पर उचित ढ़ंग से लागू नहीं करा पाते हैं। जबकि चीन में केंद्र सरकार द्वारा लागू योजना को स्थानीय अधिकारियों द्वारा हाथों-हाथ लिया जाता है और उसका पालन किया जाता है।  



    भारत में भी पर्यावरण और विकास को लेकर तकरार दिन पर दिन बढ़ती जा रही हैं। हालांकि ये विकास का सूचक है। ऐसा मानकर खुशी मनाई जा सकती है, लेकन ऐसा खुशी किस काम की जो पर्यावरण की बली पर मिल रही हो। एक विकास जिसके लंबे समय तक चलने की संभावना न के बराबर हो। विकास जो लोगों को आधुनिकता से भरी हुआ जीवन तो दे रहा हो लेकिन इसी के साथ आपकी आने वाली पीढ़ियों के लिए मुश्किल भी पैदा कर रही हो।


      लद्दाख के जलवायू कार्यकर्ता और शिक्षक ने लद्दाख के पर्यावरण को सुरक्षित रखने के लिए पर्यावरण अनशन किया। ताकि केंद्र शासित प्रदेश को छठी सूचि में शामिल करके वहां की जलवायु को सुरक्षित रखा जा सके. छत्तीसगढ़ राज्य के हसदेव जंगलों में कोयला की खुदाई के लिए पेड़ों को काटा जा रहा है। स्थानीय लोगों द्वारा पेड़ों के कटने पर विरोध दर्ज किया जा रहा है। भूस्खलन से प्रभावित क्षेत्र में निर्माण गतिविधियों का परिणाम जोशीमठ आपदा की तरह उभरता है। ऐसे ही तमाम उदाहरम हैं, जहां पर्यावरण और विकास की तकरार चल रही है। इस तकरार को कैसे दूर किया जाए ये देखने-समझने की जरुरत है।



क्या करने की जरुरत है–

 वायू प्रदूषण के संदर्भ में बात करें तो कुछ उपाय हैं जिन्हें लंबे समय तक लगातार साझे प्रयासों के जरिए कम किया जा सकता है। हालांकि इनमें से अधिकांष पर काम चल रहा है, लेकिन ये प्रयास काफी कम हो रहे हैं और अगर हो भी रहे हैं तो इनके होने की गति काफी धीमी है।

     सार्वजनिक परिवहन को बढ़ावा दिया जाए ताकि सड़कों पर गाडियों की अधिकता से होने वाले प्रदूषण को कम किया जा सके। इस तरह के प्रयासों में दिल्ली सरकार का ऑड-ईवेन फार्मूला भी काफी हद तक सही था। शहरों में कुछ दिन ‘नो कार डे’ के तौर पर होने चाहिए ताकि कम से कम एक दिन तो सड़कों को आराम दिया जाए। आने जाने के लिए कम विनाशकारी व्यवस्था को बढ़ावा देना चाहिए, जैसे कार के बजाए साइकिल को बढ़ावा दिया जाए।

     हमें खुद आगे आकर पर्यावरण को रोकने और उसे कम करने के प्रयास करने चाहिए। हमें सरकार द्वारा हर छोटी-छोटी बातों पर नियम-कानूून बनने का इंतजार नहीं करना चाहिए। सरकार को भी शहरों में होने वाले प्रकृतिक स्थानों को सुरक्षित रखना चाहिए, जैसे तालाब, शहरी वन, खेल के मैदान, घास के मैदान, कोई वेटलैंड़ ऐरिया अगर हो तो। 

      कचरा निपटान की विधी पर विशेष विशेष ध्यान होना चाहिए। न केवल उन पर कड़ी निगरानी रखनी चाहिए बल्कि उनका उलंघन करने वालों पर समय-समय पर कार्यवाही होनी चाहिए बल्कि इसे रोकने में काम करने वालों को प्रोत्साहित भी करना चाहिए। घरों में खाना बनाने के लिए स्वच्छ ईधन उपलब्ध कराना चाहिए। फिर से बनने वाली ऊर्जा को बढ़ावा देना चाहिए ताकि धरती के सीमित संसाधनों को नष्ट होने से बचाया जा सके।  

      इन सब बातों से एक बात निकलकर आती है कि अगर पर्यावरण से प्रदूषण को समाप्त करना है तो हमें सतत विकास पर ध्यान देने की जरुरत है। सरल शब्दों में कहें तो पर्यावरण में हमारा हस्तक्षेप उतना ही होना चाहिए जितने से पर्यावरण को नुकसान न हो। अभी की स्थिति के हिसाब से ये एक ऐसा विकल्प है जिसके जरिए हम विकास और पर्यावरण दोनों को साथ-साथ लेकर चल सकते हैं। अगर हम सतत विकास नहीं कर पाते हैं तो एक दिन हम अपने आपको नष्ट कर लेंगे तब हमें बचाने वाला कोई नहीं होगा। इसके लिए एक चंद लाइने हैं जो सतत विकास और पर्यावरण से हमारी दोस्ती को बरकरार रखने की सलाह देती है—

माटी कहे कुम्हार से तू क्या रौंदे मोए

एक दिन ऐसा आएगा मैं रौंदूगी तोय।









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