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करोड़ों परिवार गरीबी रेखा से उभरकर असमानता की खाई में समा गए

 नीति आयोग द्वारा जारी भारत में बहुआयामी गरीबी की रिपोर्ट के अनुसार पिछले 9 सालों में 24.82 करोड़ भारतीय बहुआयामी गरीबी से बाहर निकले हैं। इसे प्रतिशत में देखें तो 2013-14 में गरीबी 29.17% थी।  2022-23 में स्थिति में सुधार हुआ, तो यह घटकर 11.28% रह गई। और सरल शब्दों में कहा जाए तो इस बीच गरीबी में 17.89% की गिरावट दर्ज हुई है।  

     इस अवधि में उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश ने बहुआयामी गरीबी को कम करने में बेहतर प्रदर्शन किया है, क्योंकि अन्य राज्यों की तुलना में यहां गरीबी में तीव्र गिरावट देखने को मिली है। उत्तर प्रदेश में सबसे ज्यादा 5.94 करोड, बिहार में 3.77 करोड और मध्य प्रदेश में 2.30 करोड लोग बहुआयामी गरीबी से बाहर आए हैं। बहुआयामी गरीबी सूचकांक के सभी 12 संकेतों में सुधार देखने को मिले हैं। इस लिहाज से देखें तो 2030 से पहले ही भारत सतत विकास लक्ष्यों के लक्ष्य 1.2 (बहुआयामी गरीबी को आधे से कम करना) को प्राप्त करने की सीढ़ियां चढ़ते दिखाई दे रहा है। हालांकि इसके उलट भी परिणाम सामने आ सकते हैं।


 गरीबी से ग्रसित क्षेत्र



गरीबी कम करने में मददगार सरकारी योजनाए–

     सरकार तर्क देती है कि गरीबी कम करने में सरकार द्वारा चलाई गई योजनाएं मददगार साबित हुई हैं। यहां कुछ योजनाओं का जिक्र किया है जिसका हवाला सरकार द्वारा समय-समय पर दिया जाता रहा है। इन योजनाओं में पोषण अभियान और एनीमिया मुक्त भारत से स्वास्थ्य सुविधाओं में सुधार हुआ है। राष्ट्रीय खाद्द सुरक्षा अधिनियम के तहत दुनिया का सबसे बड़ा खाद्द सुरक्षा कार्यक्रम चलाकर, लक्षित सार्वजनिक वितरण प्रणाली के जरिए 81.35 करोड़ लोगों तक अनाज पहुंचाया जा रहा है। खाद्द सुरक्षा को और बेहतर करने के लिए प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना के तहत मुफ्त अनाज वितरण कार्यक्रम को अगले 5 सालों के लिए बढ़ा दिया गया है। 

      खाना पकाने के प्रयोग में होने वाले ईधन को स्वच्छ ईधन में बदलने पर जोर दिया जा रहा है, जिसके लिए उज्ज्वला योजना की मदद ली गई है। घरों तक बिजली की पहुंच बढ़ाने के लिए सौभाग्य योजना, स्वच्छ भारत मिशन और जल जीवन मिशन के तहत लोगों के रहन-सहन को बेहतर बनाने पर काम चल रहा है।  वित्तीय समावेशन के लिए प्रधानमंत्री जनधन योजना, लोगों को सुरक्षित आवास दिलाने के लिए प्रधानमंत्री आवास योजना चलाई जा रही है। केंद्र सरकार ने देश की आजादी के 100 साल पूरे होने तक भारत को विकासशील राष्ट्र से विकसित राष्ट्र बनाने का रोडमैप बनाया है। इस लक्षित बर्ष के साल को प्रतीक मानते हुए इस योजना का नाम ‘विकसित भारत @2047’ रखा गया है।  


घरेलू खपत के पैटर्न दिखाते बढ़ती असमानता–  


गरीबी की स्थिति जाननने के लिए खपत के बदलते स्वरुप को समझना भी जरुरी है। आखिर देश की जनसंख्या का किन वस्तुओं पर खर्च कर रही है। नेशनल सैंपल सर्वे द्वारा जारी आंकड़ों पर निगाह ड़ाली जाए तो पता चलता है कि लोग भोजन पर खर्च करने के बजाए अन्य वस्तुओं पर अधिक खर्च कर रहे हैं। हालांकि खर्च को लेकर असमानता भी देखाई पड़ रही है। ये असमानता  ग्रामीण- शहरी, एक राज्य से दूसरे राज्य, लिस्ट में ऊपर(अमीर) और नीचे(गरीब) की 5% जनसंख्या, राज्य और केंद्रशासित प्रदेशों; हर स्तर पर देखने को मिल रही है। सबसे अधिक असमानता अमीर और गरीब के बीच देखने को मिल रही है। 


               असमानता की स्थिति दर्शाता चित्र


समकालीन भारत में प्रति माह उपभोग पर होने वाला खर्च –

उपभोग पर होने वाले खर्च के आधार पर अनुमान लगा सकते हैं कि लोगों की आर्थिक स्थिति कैसी है। प्रति माह औसतन उपभोग पर खर्च के ये आकड़ें 2022-23 के हैं। इसक हिसाब से गांव में रहने वाला व्यक्ति औसतन 3773 रुपये खर्च करता। कुल आय का खाना पर खर्च कम यानि 46% जबकि दूसरे खर्चे अधिक 54 % होते हैं। शहर में रहने वाला व्यक्ति औसतन 6459 रुपये खर्च करता, जो कि गांव की तुलना में अधिक होता है। शहरी व्यक्ति खाना पर खर्च ग्रामीण की तुलना में कम करता है 39% जबकि दूसरे खर्चे अधिक 61% होते हैं।


गरीबों और अमीरों के औसतन खर्च में असमानता की खाई

नीचे के 5% ग्रामीणों का औसतन खर्च 1373 रुपये जबकि शहरी व्यक्ति 2001 रुपये खर्च करता है। ऊपर के 5 % ग्रामीणों  का औसतन खर्च 10501 रुपये प्रतिमाह जबकि शहरी व्यक्ति 20824 रुपये प्रतिमाह खर्च करते हैं। 

   हालांकि रिपोर्ट के आकड़ों से गरीबी घटने के सकारात्मक संकेत तो मिलते हैं, लेकिन पूरी रिपोर्ट पढ़ने के बाद पता चलता है कि अमीर और गरीब के बीच असमानता की खाई और भी बढ़ती जा रही है। सबसे चौकाने वाले आंकडे निम्न वर्ग और उच्च वर्ग के उपभोग को लेकर हैं। निम्न वर्ग का ग्रामीण व्यक्ति प्रतिमाह जितना खर्च करता है उससे तकरीबन 15 गुना खर्च शहरी उच्च वर्ग का व्यक्ति कर देता है। 



गरीबी से क्या मतलब है-

आम बोलचाल में गरीबी से मतलब ऐसा व्यक्ति जो अपनी आमदनी से बुनियादी मानवीय जरुरतें भी पूरी नहीं कर पाता हो। कम आमदनी होने के कारण संसाधनों तक उनकी पहुंच नही होती है, जिससे उनके रहन-सहन का स्तर काफी निम्न होता है। ये तो एक सामान्य सी स्थिति है जो कि गरीबों में सामान्य तोर पर देखने को मिलती है, लेकिन हर देश अपने-अपने हिसाब से भी मानक तय करते हैं कि गरीबी की परिभाषा क्या होगी, कौन इसके अंतर्गत आएगा। 

    विश्व बैंक के अनुसार, “गरीबी में कल्याण की कमी के साथ-साथ अनेक आयाम शामिल हैं। कम आय के साथ ही सम्मानपूर्वक जीवन जीने के लिए बुनियादी वस्तुओं और सेवाओं तक पहुंच का अभाव होता है। अच्छी शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं की कमी, साफ-सफाई और साफ पानी तक पहुँच में कमी, अपर्याप्त शारीरिक सुरक्षा, अपनी आवाज उठाने के प्रर्याप्त अवसर न होना, स्थिति को सुधारनें में असमर्थ होना।"


भारत में गरीबी का आकलन कैसे होता है–

     भारत में गरीबी का आकलन नीति आयोग के टास्क फोर्स द्वारा किया जाता है। यह आकलन सांख्यिकीय और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय के तहत आने वाले नेशनल सैंपल सर्वे ऑफिस द्वारा जारी डाटा की मदद से होता है। आजादी के बाद से भारत में गरीबी मापन के लिए 6 आधिकारिक समितियां बन चुकी हैं। इनमें से छठवीं समिति, रंगराजन समिति (2014) की रिपोर्ट पर केंद्र सरकार ने कोई कार्रवाई नहीं करी। इस कारण वर्तमान समय में भारत में गरीबी रेखा का मापन तेंदुलकर समिति के अनुसार होता है।

     तेंदुलकर समिति के अनुसार भारत की कुल आबादी की 21.9 % जनसंख्या गरीबी रेखा के नीचे जीवन यापन करती है। शहरी परिवारों के लिए गरीबी रेखा को 1000 रुपये/माह और ग्रामीण परिवारों के लिए 816 रुपये/माह निर्धारित किया गया है। 

             गरीब परिवार का प्रतीकात्मक चित्र



हमें गरीबी मापने की जरुरत क्यों हैं ?

अगर हमारे पास गरीबी से जुड़े सटीक आंकडे होंगे तो हम देश के अंदर और बाहर (दूसरे देशों के साथ) गरीबी की तुलना तर्कसंगत ढ़ंग से कर सकेगें। बदलते समय के साथ गरीबी में होने वाले उतार-चढ़ाव को समय रहते जान पाएंगें। जब गरीबी के बढ़ने-घटने को समझ पाएंगें तो गरीबी को रणनीतिक ढ़ंग से खत्म करने की योजना भी बना सकते हैं। सही योजनाएं होगीं तो लक्षित वर्ग तक उनका लाभ पहुंचा सकते हैं। पहुंचाई गईं इन योजनाओं के प्रभावी-अप्रभावी होने का समय रहते मूल्यांकन भी कर सकते हैं। 



भारत में गरीबी के क्या कारण हैं–

पूंजी का निर्माण कम हो रहा है। जिस कारण लोगों को पर्याप्त रोजगार उपलब्ध नहीं हो पाते हैं। चूकिं देश के सभी हिस्सों को समान रुप से आधारभूत सरंचनाएं नहीं मिल पाने के कारण नए उद्योगों और धंधों का उचित ढ़ंग से विकास नहीं हो पाता है। अगर हो भी जाता है तो उसके उतने सकारात्मक परिणाम सामने नहीं आ पाते हैं जितने आने की अपेक्षा की जाती है। लोगों की आमदनी कम होने के कारण मांग का अभाव रहता है। मांग कम होने के कारण आपूर्ति कम होती है। आपूर्ति कम होने से उद्योग-धंधे कम विकसित होते हैं, जिससे रोजगार के स्रोत कम हो जाते हैं। यह दुष्चक्र चलता ही रहता है। अधिक जनसंख्या होने के कारण समसाधनों का उचित और समान वितरण नहीं हो पाता है। इस कारण सरकार द्वारा बनाई जाने वाली योजनाओं का लाभ भी समाज के हर वर्ग को नहीं मिल पाता है।

भारत में गरीबी से जुड़ी क्या चुनौतियां हैं– असमानता का बोलबाला– आय, रहन-सहन के स्तर पर भारत में बहुत असमानताएं हैं। अमीर लगातार अमीर हो रहे हैं, लेकिन गरीबों की गरीबी में सुधार अमीरों की तुलना में काफी कम हो रहा है। उदाहरण के लिए भारत में ग्रामीणों की संख्या अधिक है और कृषि से जुड़ी आबादी भी अधिक है। गावों में संसाधनों तक पहुंच कम, विकास योजनाएं भी कम होती हैं, कृषि में अन्य क्षेत्रों की तुलना में जोखिम अधिक होता है, जिस कारण जनसंख्या के बीच असमानता बनी रहती है। 

असंगठित क्षेत्र की अधिकता– एनएसएसओ द्वारा जारी आंकड़ो के अनुसार 2021-22 में भारत की जनसंख्या का 45.5% श्रमिक कृषि क्षेत्र से जुड़ा है। चूंकि कृषि एक असंगठित क्षेत्र है इसलिए यहां के मजदूरों को अन्य क्षेत्रों की तुलना में कम लाभ प्राप्त होते हैं। इनकी आमदनी अनियमित होती है। हालांकि सरकार असंगठित क्षेत्र से जुड़े लोगों के रोजगार दिलाने के स्रोतों को बढ़ाने पर जोर दे रही है लेकिन अभी भी सुधार की जरुरत है। 

बढ़ती बहुआयामी गरीबी- बहुआयामी गरीबी के अंतर्गत शिक्षा, स्वास्थ्य, जीवन स्तर, आवास की गुणवत्ता शामिल होती है। इन चार क्षेत्रों के 38 संकेतांको के जरिए इसकी समीक्षा की जाती है। 

गरीबी और असमानता को कैसे कम किया जा सकता है– 


सरल शब्दों में कहें तो गरीबों की गिनती करके उनके लिए योजनाएं लाई जाएं। इन योजनाओं का समय-समय पर निरीक्षण हो ताकि उनको लागू करने में होने वाली कमियों को दूर किया जा सके। लेकिन गरीबी को कम करने के लिए एक व्यवस्थित तंत्र की जरुरत है जिसमें स्वास्थ्य, शिक्षा, पोषण, आवास जैसी आधारभूत जरुरतों को पूरा करने पर जोर देना चाहिए। न केवल मुहैया कराना चाहिए बल्कि संसाधनों के समान वितरण पर भी जोर देना चाहिए। 

   सरकार को गरीबी दूर करने से ज्यादा आर्थिक समृद्धि लाने पर जोर देना चाहिए। बस इस बात का ख्याल रखना है कि समृद्धि का लाभ एक जगह सीमित रहने के बजाय हर वर्ग तक पहुंचना चाहिए। क्योंकि आर्थिक वृद्धि होने पर भी जरुरी तो नहीं है कि उसका लाभ हाशिए पर मौजूद अंतिम व्यक्ति के पास तक भी पहुंचे। इसलिए इन योजनाओं और लाभों की कड़ी निगरानी भी होनी चाहिए। 

   सरकार को हर हाथ हुनरमंद करने पर ध्यान देना चाहिए, ताकि घरेलू आय में बढ़ोतरी हो सके। कुछ मामलों में नकद हस्तांतरण भी मददगार साबित हो सकता है लेकिन इसके जोखिम भी होते हैं, तो इसको अंतिम विकल्प के तौर पर रखना चाहिए।


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