हालांकि रोहिंग्या समुदाय के लोग म्यांमार में सदियों से निवास करते आ रहे थे किंतु म्यांमार की सरकार के अनुसार ये लोग औपनिवेशिक शासन के दौरान देश में आये थे . जबकि देखा जाए तो ये लोग म्यांमार के समीप राज्यविहीन क्षेत्र रखाइन में बहुसंख्या के रूप में निवास करते थे . लेकिन जब बर्मा (वर्तमान म्यांमार ) ने रखाइन प्रांत पर कब्जा कर लिया तब से ये अपने हि क्षेत्र में अल्पसंख्यक तथा प्रताड़ना ( रखाइन के म्यांमार में जुड़ने से ) का शिकार हो गये .
1948 में बर्मा अंग्रेजों से स्वतंत्र हुआ . म्यांमार को आजादी दिलाने में रोहिंग्या समुदायों की भी विशेष भूमिका रही थी . हालांकि आजादी के कुछ वर्षों बाद तक इस समुदाय को महत्व दिया गया किंतु 1960 का दशक आते आते रोहिंग्या समुदाय के लोगों के साथ अन्याय तथा शोषण आरंभ हो गया . बर्मा के बौद्धों तथा सरकार ने उन्हे अल्पसंख्यक मानकर उन्हे प्रताड़ित करना शुरु कर दिया . 1982 में बर्मा राष्ट्रीय कानून पारित होने के बाद तो उनकी स्थिति बेहद दयनीय हो गयी . क्योंकि इस कानून में इन्हें देश की जनता मानने से इन्कार कर दिया गया था अर्थात पूर्ण राज्य का दर्जा नहीं प्रदान किया गया था .
शोषण तथा प्रताड़ना के शिकार रोहिंग्या समुदाय के लोगों ने पड़ोसी देशों की ओर पलायन शुरु कर दिया इनमें से भारत, बांग्लादेश तथा थाइलैण्ड़ सर्वोच्च स्थान रखते हैं . इस पलायन के कारण दक्षिण पूर्व एशिया के इस क्षेत्र में सबसे बड़ा शरणार्थी संकट उत्पन्न हो गया . और ये लोग विश्व के सबसे बड़ शरणार्थी समुदाय के रूप में उभर कर सामने आए .
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